क्या bjp को शिवसेना लग रही है बोझ.
(Is Shiv Sena looking for the burden of bjp)भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना का ढाई दशक से ज़्यादा पुराना गठबंधन टूट की कगार पर है. दोनों तरफ़ से तलवारें खिंच चुकी हैं. बात अब आर-पार की लड़ाई की हो रही है. अभी तक शिवसेना लगातार हमला कर रही थी और भाजपा चुप थी. अब भाजपा ने पलटवार किया है. इस आक्रमण की अगुआई ख़ुद राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने संभाली है. अमित शाह ने कहा है कि जो हमारे साथ रहेगा उसे जिताएंगे और जो ख़िलाफ़ जाएगा उसे हराएंगे. इसके साथ ही उन्होंने पार्टी की राज्य इकाई से कहा कि वह अकेले लड़ने के लिए तैयार रहे. bjp उनके साथ नही है.
जब शिवसेना का मराठी मानुष का आंदोलन ठंडा पड़ा और उसने हिंदुत्व का रुख़ किया तो प्रमोद महाजन ने अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और स्वर्गीय वाल ठाकरे के समाने प्रस्ताव रखा कि हिंदुत्व विचारधारा वाली दोनों पार्टियों को साथ मिलकर चलना चाहिए.
भाजपा के कुछ नेताओं ने इसे तोड़ने का प्रयास किया. महाजन के निधन के बाद यह ज़िम्मेदारी गोपीनाथ मुंडे ने संभाली पर 2004 में केंद्र और राज्य से सत्ता के बाहर होने के बाद दोनों दलों के मतभेद बढ़ने लगे.
साल 2013 में जब भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के मुद्दे पर चर्चा चल रही थी तो सेना ने अपनी ओर से सुषमा स्वराज का नाम आगे बढ़ा दिया. बाल ठाकरे की मौत के बाद सेना को उम्मीद थी कि उन्हें वही रुतबा और सम्मान मिलेगा जो बाल ठाकरे को हासिल था. पर वैसा हुआ नहीं
विधानसभा चुनाव में सेना की दो शर्तें थीं. हमेशा की तरह सीट भाजपा से ज़्यादा चाहिए और सीट कोई भी पार्टी ज़्यादा जीते लेकिन मुख्यमंत्री सेना का ही होगा.
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