राजनैतिक बस से बेबस मजदूर एक निष्पक्ष विश्लेषण का प्रयास - Find Any Thing

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Friday, May 22, 2020

राजनैतिक बस से बेबस मजदूर एक निष्पक्ष विश्लेषण का प्रयास

राजनैतिक बस से बेबस मजदूर ~ "एक निष्पक्ष विश्लेषण का प्रयास"
( an unaided labour from the political bus- an unbiased analysis )


तो चलिए भईया शुरू करते हैं.. हुआ कुछ यूँ कि हमारे देश पर सबसे अधिक सालों तक राज करने वाली पार्टी की एक कद्दावर नेत्री जी से सड़क पर पैदल चल रहे मजदूरों का दर्द देखा नहीं गया, तो खुद को रोकते - रोकते लॉकडाउन के चौथे चरण में उनका दयालू स्वरूप बाहर आ ही गया! उन्होंने जल्दी जल्दी में 1000 बसों का सैलाब सा लगा दिया प्रदेश की सीमा पर और 18 मई 2020 को उस उत्तर प्रदेश की सरकार से 1000 बस चलाने की अनुमति माँग ही ली जिस प्रदेश में इनकी घोर विरोधी दल की सरकार है! 

हालाँकि यहाँ ये भी ध्यान देने योग्य बात है कि जिन प्रदेशों से सबसे अधिक मजदूरों और बच्चों का पलायन हो रहा जैसे महाराष्ट्र, राजस्थान या पंजाब.. उन प्रदेशों में इन्हीं नेत्री जी की सरकार है खैर छोड़िए ये तो सहायता का काम है उनकी मर्जी वो जहां करें! 

इन सब के बीच 18 मई की शाम तक उत्तर प्रदेश सरकार अनुमति दे तो देती है पर भई इतनी आसानी से कैसे? विरोधी दल है.. आदेश आता है जल्द से जल्द 1000 बसों की सूची ड्राईवरों के नाम व काग़जों के साथ उपलब्ध कराएं, बस फिर क्या था? आनन फानन में कागजात जमा करने शुरू कर दिए (पहले से नहीं किए थे)!

चलिए अगले दृश्य की तरफ बढ़ते हैं.. कैसे भी करके कागजात पहुँचा दिए जाते हैं, सरकार जिम्मेदारी का हवाला देकर उन काग़ज़ों की जांच पड़ताल करती है तो पाया जाता है कि कुछ बसें ऑटो हैं, कुछ बसें स्कूटर हैं (अर्थात्‌ नंबर )बस! यहां से शुरू होती है राजनीति..सरकार नेत्री जी से जवाब मांगे बिना पहुच जाती है प्रेस कॉन्फ्रेंस करने जिससे अपने धुर विरोधी का भंडाफोड़ सकें, सरकार के जवाब में नेत्री जी भी मोर्चा खोल देती हैं और प्रारम्भ होती है आरोप प्रत्यारोप की जुबानी जंग!! बसों को भी प्रदेश की सीमा से लौटा दिया जाता है..
"इन सब में कहीं ये ना भूलना मजदूर अभी भी परेशान है"
..खैर छोड़िए इस पूरे प्रकरण का निष्कर्ष बस इतना सा है की आई हुई बसों को खाली लौटाना एक स्तरीय नेता को शोभा नहीं देता। वो भी तब जब आप इस पूरी महामारी के दौरान एक बेहतरीन नेता बन कर उभरे हो। अगर सामने वाला राजनीति करे तब भी ऐसी स्थिति में मदद लेना और देना अटल जी की पार्टी का नैतिक धर्म है। आखिर इसमें मजदूरों का हित था। राष्ट्रहित था। और सनद रहे राष्ट्रहित ही सर्वोपरि है।
अटल जी की ये पंक्तियां शायद ऐसी ही स्थिति के लिए लिखी गई थी...
मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना, 
गैरों को गले न लगा सकूँ,
इतनी रुखाई कभी मत देना। 

लेखक ~ शुभम सिंह

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