संसद की एक स्थाई समिति ने दोकलम में भारत और चीन की सेनाओं के बीच पिछले साल हुए गतिरोध की स्टडी की है
समिति ने इस मामले से निपटने की भारत सरकार की रणनीति की सराहना की है लेकिन चेतावनी देते हुए कहा है कि भूटान के नजदीक ट्राई जंक्शन पर असुविधाजनक बनाए गए चीनी ढांचे को अभी तक खत्म नहीं किया गया है
विदेश मंत्रालय की इस स्थाई समिति का नेतृत्व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर कर रहे थे। उन्होंने भारत-चीन रिश्तों पर अपनी रिपोर्ट लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन को 4 सितंबर को सौंपी है
जिसमें दोकलम का भी जिक्र है। यह रिपोर्ट सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध है इस समिति में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भी शामिल थे
इस रिपोर्ट में वरिष्ठ सरकारी अधिकारी द्वारा पैनल को दिए सबमिशन शामिल थे जिसमें साफतौर से कहा गया है कि दोकलम विवाद हमारी सुरक्षा के साथ समझौता करने की एक कोशिश थी
भारत-भूटान-तिब्बत की ट्राई जंक्शन पर भारतीय सेना और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के बीच 16 जून 2017 को गतिरोध हुआ था। यह गतिरोध 28 अगस्त को खत्म हुआ था
विशेष प्रतिनिधि तंत्र के तहत तय किए गए सिद्धांतों को चीन की तरफ से न माने जाने पर समिति ने चिंता जाहिर की है। विशेष प्रतिनिधि तंत्र सीमा विवाद का एक हल है। पैनल का कहना है कि चीन की तरफ से अकसर होने वाली घुसपैठ और उसके इस रवैये को लेकर सचेत रहने की जरूरत है
चीन का रिकॉर्ड भरोसा पैदा नहीं करता है समिति का कहना है कि भारत को यह उम्मीद करनी चाहिए कि चीन सिद्धांतों की बातें करने के साथ ही उनका पालन भी करे। 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की चीन यात्रा के बाद इस विशेष प्रतिनिधि तंत्र को स्थापित किया था
उसके बाद से अब तक भारत और चीन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच 20 बात वार्ता हो चुकी है सीमा विवाद के निपटारे के लिए इस तंत्र को अहम माना जाता है
बेशक दोकलम से चीन ने अपने सैनिकों को हटा लिया है लेकिन बीजिंग की मंशा को संयोग नहीं माना जाना चाहिए चाहे कोई भी रणनीतिक कारण रहा हो, चीन का दोकलम में स्थिति को बदलने का प्रयास करना भारत के लिए अच्छी खबर नहीं है
यह क्षेत्र सिलिगुड़ी कॉरिडोर के नजदीक है भारत के सातों उत्तर पूर्वी राज्य इसके मेनलैंड से छोटे कॉरिडोर के जरिए जुड़े हुए हैं
No comments:
Post a Comment