अमेरिका ने भारत पर रूस से एस-400 ट्रायम्फ मिसाइल खरीदने को लेकर कुछ राहत दे है। एनडीए सरकार ने अमेरिकी सरकार को एक पत्र लिखा है|
जिसमें 13,500 करोड़ रुपये कीमत के 24 एमएच-60 रोमियो हेलीकॉप्टर का सौदा करने की बात कही गई है। ये हेलीकॉप्टर कई भूमिकाओं में काम कर सकते हैं।2020-2024 तक ये हेलिकॉप्टर भारत को मिल सकते हैं जो भारतीय नौसेना को मजबूत बनाने का कार्य करेंगे। यह फैसला ऐसे समय पर लिया गया है जब चीन के परमाणु और डीजल-इलेक्ट्रिक सबमरीन प्रशांत महासागर के क्षेत्र में नियमित अंतराल पर नजर आते रहते हैं। एमएच-60 हेलीकॉप्टर की यह डील सरकार से सरकार के बीच होगी। इनका निर्माण सिरलोस्की-लॉकहीड मार्टिन कंपनी अमेरिका के सैन्य बिक्री कार्यक्रम के अंतर्गत करती है। माना जा रहा है कि इस साल के अंत तक इस सौदे पर हस्ताक्षर हो जाएंगे। 2007 से भारत ने अमेरिका से होने वाले सैन्य रक्षा सौदे को 17 बिलियन डॉलर तक बढ़ा दिया है।
ग्लोबल टेंडर प्रक्रिया के बजाए फ्लेक्सिबल मैनुफैक्चरिंग सिस्टम को आसान और साफ-सुथरा माना जाता है। टेंडर प्रक्रिया में काफी समय लगता है और कई बार यह सौदा भ्रष्टाचार के आरोप लगने की वजह से पटरी से उतर जाता है। भारत ने अपने ज्यादातर हथियार अमेरिका से खरीदे हैं। जिसमें एफएमएस कार्यक्रम के तहत सी-17 ग्लोबमास्टर-3 स्ट्रैटिजिक एयरलिफ्टर्स, सी-130 जे सुपर हरक्युलिस विमान और एम-777 अल्ट्रालाइट होवित्जर शामिल हैं। हेलिकॉप्टर अधिग्रहण करने का यह कार्य लगभग एक दशक से लंबित था।हेलिकॉप्टर को खरीदने के लिए भारत सरकार ने अमेरिकी प्रशासन को 13,500 करोड़ रुपये का 'लेटर ऑफ रिक्वेस्ट' भेज दिया है। यदि पिछले एक दशक का आकलन किया जाए तो बीते 3-4 सालों में अमेरिका भारत को रूस से ज्यादा सैन्य उपकरणों की आपूर्ति कर रहा है।
ग्लोबल टेंडर प्रक्रिया के बजाए फ्लेक्सिबल मैनुफैक्चरिंग सिस्टम को आसान और साफ-सुथरा माना जाता है। टेंडर प्रक्रिया में काफी समय लगता है और कई बार यह सौदा भ्रष्टाचार के आरोप लगने की वजह से पटरी से उतर जाता है। भारत ने अपने ज्यादातर हथियार अमेरिका से खरीदे हैं। जिसमें एफएमएस कार्यक्रम के तहत सी-17 ग्लोबमास्टर-3 स्ट्रैटिजिक एयरलिफ्टर्स, सी-130 जे सुपर हरक्युलिस विमान और एम-777 अल्ट्रालाइट होवित्जर शामिल हैं। हेलिकॉप्टर अधिग्रहण करने का यह कार्य लगभग एक दशक से लंबित था।हेलिकॉप्टर को खरीदने के लिए भारत सरकार ने अमेरिकी प्रशासन को 13,500 करोड़ रुपये का 'लेटर ऑफ रिक्वेस्ट' भेज दिया है। यदि पिछले एक दशक का आकलन किया जाए तो बीते 3-4 सालों में अमेरिका भारत को रूस से ज्यादा सैन्य उपकरणों की आपूर्ति कर रहा है।
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