केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन के बीच तनाव और बढ़ता ही जा रहा है। वैसे यह पहली बार नहीं है जब सरकार और आरबीआई आमने-सामने हैं।
नरेंद्र मोदी सरकार आरबीआई विवाद का हल ढूंढने के लिए भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की चिट्ठी का सहारा ले सकती है।
ऐसी चर्चा भी थी कि सरकार आरबीआई एक्ट का सेक्शन-7 लागू करके इसकी स्वायत्तता पर लगाम लगाना चाहती है। जवाहर लाल नेहरू के समय में भी आरबीआई के चौथे गवर्नर रहे बेनेगल रामा राव और सरकार के बीच मतभेद थे। जिसकी वजह से उन्होंने जनवरी 1957 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
राव ने साढ़े सात साल के कार्यकाल के बाद इस्तीफा दिया था क्योंकि जवाहर लाल नेहरू ने वित्त मंत्री टी. टी. कृष्णमचारी का साथ देते हुए यह साफ कर दिया था कि आरबीआई सरकार की विभिन्न गतिविधियों का हिस्सा है। वह सरकार को सलाह दे सकता है लेकिन उसे सरकार के साथ भी रहना है।
यह बातें नेहरू ने जनवरी 1957 में एक पत्र में लिखी थीं। जिसमें उन्होंने सुझाव दिया था कि यदि राव को लगता है कि उनके लिए कार्य जारी रखना संभव नहीं है तो वह पद से इस्तीफा दे सकते हैं। इसके कुछ दिनों बाद राव ने इस्तीफा दे दिया था।
राव ने टीटीके पर अभद्र व्यवहार का आरोप लगाया था। दोनों के बीच मतभेदों की शुरूआत एक बजट प्रस्ताव को लेकर हुई थी। टीटीके ने आरबीआई को वित्त मंत्रालय का एक भाग बताया था। इसके अलावा उन्होंने संसद में इस बात को लेकर शंका जाहिर की थी कि वह किसी तरह के सोच विचार के लिए सक्षम है या नहीं। राव को लिखे पत्र में भारत के पहले प्रधानमंत्री और राहुल गांधी के नानाजी ने लिखा, 'आरबीआई सरकार को सलाह दे सकती है लेकिन उसे सरकार के साथ तालमेल बनाकर रहना होगा।
नेहरू ने कहा था यह बिलकुल हास्यास्पद बात होगी यदि केंद्रीय बैंक अलग तरह की नीति अपनाए यदि वह सरकार के उद्देश्यों या उसके तरीकों से सहमत नहीं है। पत्र में नेहरू ने लिखा था, 'आपने आरबीआई की स्वायत्तता पर दबाव डाला है।
नरेंद्र मोदी सरकार आरबीआई विवाद का हल ढूंढने के लिए भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की चिट्ठी का सहारा ले सकती है।
ऐसी चर्चा भी थी कि सरकार आरबीआई एक्ट का सेक्शन-7 लागू करके इसकी स्वायत्तता पर लगाम लगाना चाहती है। जवाहर लाल नेहरू के समय में भी आरबीआई के चौथे गवर्नर रहे बेनेगल रामा राव और सरकार के बीच मतभेद थे। जिसकी वजह से उन्होंने जनवरी 1957 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
राव ने साढ़े सात साल के कार्यकाल के बाद इस्तीफा दिया था क्योंकि जवाहर लाल नेहरू ने वित्त मंत्री टी. टी. कृष्णमचारी का साथ देते हुए यह साफ कर दिया था कि आरबीआई सरकार की विभिन्न गतिविधियों का हिस्सा है। वह सरकार को सलाह दे सकता है लेकिन उसे सरकार के साथ भी रहना है।
यह बातें नेहरू ने जनवरी 1957 में एक पत्र में लिखी थीं। जिसमें उन्होंने सुझाव दिया था कि यदि राव को लगता है कि उनके लिए कार्य जारी रखना संभव नहीं है तो वह पद से इस्तीफा दे सकते हैं। इसके कुछ दिनों बाद राव ने इस्तीफा दे दिया था।
राव ने टीटीके पर अभद्र व्यवहार का आरोप लगाया था। दोनों के बीच मतभेदों की शुरूआत एक बजट प्रस्ताव को लेकर हुई थी। टीटीके ने आरबीआई को वित्त मंत्रालय का एक भाग बताया था। इसके अलावा उन्होंने संसद में इस बात को लेकर शंका जाहिर की थी कि वह किसी तरह के सोच विचार के लिए सक्षम है या नहीं। राव को लिखे पत्र में भारत के पहले प्रधानमंत्री और राहुल गांधी के नानाजी ने लिखा, 'आरबीआई सरकार को सलाह दे सकती है लेकिन उसे सरकार के साथ तालमेल बनाकर रहना होगा।
नेहरू ने कहा था यह बिलकुल हास्यास्पद बात होगी यदि केंद्रीय बैंक अलग तरह की नीति अपनाए यदि वह सरकार के उद्देश्यों या उसके तरीकों से सहमत नहीं है। पत्र में नेहरू ने लिखा था, 'आपने आरबीआई की स्वायत्तता पर दबाव डाला है।
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