मेघालय में मौत के मुंह में फंसे 15 मजदूर,जानिए क्या है रैट माइनिंग.
मेघालय की खदान में फंसे 15 मजदूरों को बचाए जाने की कोशिशें जारी हैं. खदान में पानी भरने के कारण रेस्क्यू ऑपरेशन में दिक्कतें आ रही हैं. साथ ही यह जानकारी भी नहीं है कि अंदर फंसे मजदूर किस स्थिति में हैं. बता दें कि शिलॉन्ग से करीब 3 घंटे के सफर के बाद लुमथारी गांव की एक कोयला खदान में 13 दिसंबर से ये मजदूर फंसे हुए हैं.उनको बचने के लिए बचाव कार्य जारी है. मेघालय में करीब 64 करोड़ टन कोयले के भंडार हैं. यह बहुत अच्छी क्वालिटी का कोयला नहीं है और इसमें सल्फर की मात्रा बहुत ज्यादा है. ज्यादा मुनाफा न होने के चलते यहां कोयले निकालने के लिए ज्यादा खर्च करने के बजाय मजदूरों की मदद ली जाती है, जो कि काफी खतरनाक होता है.
रैट माइनिंग क्या है:-
मेघालय में जयंतिया पहाड़ियों के इलाके में बहुत सी गैरकानूनी कोयला खदाने हैं. लेकिन पहाड़ियों पर होने के चलते और यहां मशीने ले जाने से बचने के चलते सीधे मजदूरों से काम लेना ज्यादा आसान पड़ता है. मजदूर लेटकर इन खदानों में घुसते हैं. चूंकि मजदूर चूहों की तरह इन खदानों में घुसते हैं इसलिए इसे 'रैट माइनिंग' कहा जाता है. बच्चे ऐसे काम के लिए मुफीद माने जाते हैं. हालांकि कई NGO इस प्रक्रिया में बाल मजदूरी का आरोप भी लगा चुके हैं. अभी भी जो 15 मजदूर खदान में फंसे हुए हैं, उनमें से ज्यादातर कम उम्र के ही हैं. एक NGO ने दावा किया था कि जयंतियां पहाड़ियों के आसपास करीब 70 हजार बच्चे रैट माइनिंग का काम करते हैं. 2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने मेघालय में रैट होल माइनिंग पर बैन लगाया था, जो कि महज एक दिखावा साबित हुआ, इसे कभी लागू नहीं किया गया. मेघालय की खदान में फंसे 15 मजदूरों को बचाए जाने का काम चल रहा है.
क्यों बेअसर रहा बैन:-
मेघालय में कोयला खनन का मुद्दा राजनीतिक है. इस साल फरवरी में विधानसभा चुनावों में भी इसका जोर था. अद्रिजा के अनुसार, विश्लेषकों का कहना है कि चुनाव में कांग्रेस इसीलिए हारी क्योंकि उसने एनजीटी का बैन हटवाने के लिए कुछ नहीं किया. बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में वादा किया था कि 8 महीने के अंदर इस मुद्दे का समाधान निकालेंगे. हालांकि बैन अभी भी जारी है. कांग्रेस कहती है कि राज्य में बीजेपी की गठबंधन की सरकार बनने के बाद अवैध खनन में बढ़ोत्तरी जारी है. मेघालय की खदान में फंसे 15 मजदूरों को बचाए जाने का काम चल रहा है.
मेघालय की खदान में फंसे 15 मजदूरों को बचाए जाने की कोशिशें जारी हैं. खदान में पानी भरने के कारण रेस्क्यू ऑपरेशन में दिक्कतें आ रही हैं. साथ ही यह जानकारी भी नहीं है कि अंदर फंसे मजदूर किस स्थिति में हैं. बता दें कि शिलॉन्ग से करीब 3 घंटे के सफर के बाद लुमथारी गांव की एक कोयला खदान में 13 दिसंबर से ये मजदूर फंसे हुए हैं.उनको बचने के लिए बचाव कार्य जारी है. मेघालय में करीब 64 करोड़ टन कोयले के भंडार हैं. यह बहुत अच्छी क्वालिटी का कोयला नहीं है और इसमें सल्फर की मात्रा बहुत ज्यादा है. ज्यादा मुनाफा न होने के चलते यहां कोयले निकालने के लिए ज्यादा खर्च करने के बजाय मजदूरों की मदद ली जाती है, जो कि काफी खतरनाक होता है.
रैट माइनिंग क्या है:-
मेघालय में जयंतिया पहाड़ियों के इलाके में बहुत सी गैरकानूनी कोयला खदाने हैं. लेकिन पहाड़ियों पर होने के चलते और यहां मशीने ले जाने से बचने के चलते सीधे मजदूरों से काम लेना ज्यादा आसान पड़ता है. मजदूर लेटकर इन खदानों में घुसते हैं. चूंकि मजदूर चूहों की तरह इन खदानों में घुसते हैं इसलिए इसे 'रैट माइनिंग' कहा जाता है. बच्चे ऐसे काम के लिए मुफीद माने जाते हैं. हालांकि कई NGO इस प्रक्रिया में बाल मजदूरी का आरोप भी लगा चुके हैं. अभी भी जो 15 मजदूर खदान में फंसे हुए हैं, उनमें से ज्यादातर कम उम्र के ही हैं. एक NGO ने दावा किया था कि जयंतियां पहाड़ियों के आसपास करीब 70 हजार बच्चे रैट माइनिंग का काम करते हैं. 2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने मेघालय में रैट होल माइनिंग पर बैन लगाया था, जो कि महज एक दिखावा साबित हुआ, इसे कभी लागू नहीं किया गया. मेघालय की खदान में फंसे 15 मजदूरों को बचाए जाने का काम चल रहा है.
क्यों बेअसर रहा बैन:-
मेघालय में कोयला खनन का मुद्दा राजनीतिक है. इस साल फरवरी में विधानसभा चुनावों में भी इसका जोर था. अद्रिजा के अनुसार, विश्लेषकों का कहना है कि चुनाव में कांग्रेस इसीलिए हारी क्योंकि उसने एनजीटी का बैन हटवाने के लिए कुछ नहीं किया. बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में वादा किया था कि 8 महीने के अंदर इस मुद्दे का समाधान निकालेंगे. हालांकि बैन अभी भी जारी है. कांग्रेस कहती है कि राज्य में बीजेपी की गठबंधन की सरकार बनने के बाद अवैध खनन में बढ़ोत्तरी जारी है. मेघालय की खदान में फंसे 15 मजदूरों को बचाए जाने का काम चल रहा है.
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