खतरनाक साइंस: प्रयोग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले मासूम बच्चों के सिर पर हथौड़े से मारा जाता था! - Find Any Thing

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Thursday, April 04, 2019

खतरनाक साइंस: प्रयोग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले मासूम बच्चों के सिर पर हथौड़े से मारा जाता था!

खतरनाक साइंस: प्रयोग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले मासूम बच्चों के सिर पर हथौड़े से मारा जाता था!

Dangerous Science: The innocent children be used to be killed with a hammer!

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बंदी बनाए हुए कैदियों पर जर्मन चिकित्सक कई तरह के 'खतरनाक और दर्दनाक एक्सपेरिमेंट' किया करते थे. इस प्रयोग में बच्चे, महिलाओं समेत करीब 60 लाख लोगों की जान चली गई थी. जर्मन समाज को "शुद्ध" करने के लिए नाज़ी द्वारा चलाया गया ये अभियान इंसानों पर किए गए सबसे क्रूरतम प्रयोग में से एक माना जाता है. आज खतरनाक साइंस की इस सीरीज में नाज़ी द्वारा किए गए उन प्रयोगों के बारे में जानिए जिसने पूरे मानवजाति को शर्मसार कर दिया था|

1933 से 1945 तक, नाज़ी जर्मनी ने जर्मन समाज को "शुद्ध" करने के लिए एक बेहद खतरनाक अभियान चलाया था. यहूदियों को नाज़ी राष्ट्र के "स्वास्थ्य" के लिए एक खतरा मानते थे, जिस वजह से कई लाख यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया गया था. इसके साथ ही नाज़ी कैंप में यहूदियों पर कई तरह के मेडिकल एक्सपेरिमेंट भी किए जाते थे. उनके शरीर में जानलेवा बिमारी के वायरस छोड़े जाते थे जिससे उनके शरीर में होने वाले बदलाव का अध्ययन किया जा सके|

साल 1933 से 1937 के बीच जर्मनी के करीब 2 लाख युवाओं की नसबंदी करवा दी गई थी. ऐसा इसलिए क्योंकि नाज़ी का ये मानना था कि ये सभी जर्मन पुरुष किसी आनुवंशिक बिमारी से ग्रसित थे. नाज़ियों के विचारधारा के अनुसार जर्मन नस्ल की शुद्धता बहुत जरूरी थी और उनका कहना था कि किसी भी तरह का 'दुषित' खून उनके लिए विनाशकारी साबित हो सकता है|

इतना ही नहीं, नाज़ियों ने लगभग 200,000 मानसिक रूप से बीमार लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. ऐसा इसलिए क्योंकि वह सभी सामाजिक या नस्लीय तौर पर उनसे निचली स्तर पर थे. इसके साथ ही उन्होंने एक ऐसा अनुसंधान विभाग भी बनवाया, जिससे लोगों के अंदर आर्यन 'खून' की पहचान की जा सके.साल 1942 से लेकर 1945 तक, नाज़ी कैंप में करीब 70 रिसर्च प्रोजेक्टस चलाए गए. इन प्रोजेक्टस के लिए करीब 200 से भी ज्यादा चिकित्सकों को रखा गया था, जो इससे जुड़े सारे प्रयोग को कैदियों पर करते थे|

नाज़ी आर्मी में एक ऐसा भी डॉक्टर था, जो कैदियों पर किए गए अपनी क्रूरता की वजह से बाद में 'एंजल ऑफ डेथ' के नाम से मशहूर हुआ. इस डॉक्टर का नाम था, जोसेफ मेंगले. उसने कैदियों पर ऐसे खतरनाक प्रयोग किए थे, जिसके खुलासे से पूरी दुनिया कांप उठी थी. जोसेफ एक कट्टर नाज़ी था, जिस वजह से उसे नाज़ी आर्मी में एक विशेष दर्जा प्राप्त था. वह कैंप में बंदी बनाए हुए लाखों यहूदियों पर उल्टे सीधे एक्सपेरिमेंट करता था. इन एक्सपेरिमेंट से पहले बंदियों की छटनी की जाती थी. जो काम करने में सक्षम थे उन्हें अलग रखा जाता और जो कमजोर थे उन्हें हिटलर के गैस चेंबर में घुट-घुटकर मरने के लिए छोड़ दिया जाता था. जोसेफ मेंगले ने उन कैदियों पर कई खतरनाक एक्सपेरिमेंट्स को अंजाम दिया था, जैसे:-

जुड़वा बच्चों पर किए गए एक्सपेरिमेंट्स:जोसेफ मेंगले जुड़वा बच्चों पर किए जा रहे इस खतरनाक एक्सपेरिमेंट का प्रमुख था. उसे शुरू से इनमें एक गहरी रुचि थी जो बाद में उसके सनक का कारण बनी. उसने करीब 1500 से भी ज्यादा जुड़वा बच्चों पर ये प्रयोग किया था, जिसमें केवल 200 ही बच पाएं. इन सभी जुड़वा बच्चों को उनके उम्र और जेंडर के हिसाब से अलग-अलग रखा जाता था. इस दौरान उनपर कई तरह के प्रयोग किए जाते. जैसे- किसी एक बच्चे की आंखों में डाई डाला जाता था, और दूसरे बच्चे पर होने वाले असर को देखा जाता था. इसके साथ ही वह दो अलग-अलग जुड़वा बच्चों को आपस में सिल दिया करते थे, ताकि वह आपस में जुड़ जाएं. इन प्रयोगों के दौरान जुड़वा बच्चों में से अगर कोई एक भी मर जाता था, तो दूसरे को भी मार दिया जाता था. जिससे बाद उनकी लाश पर डॉक्टर्स अध्ययन किया करते थे|
हाई एल्टीट्यूड टेस्ट:विमान चलाने के दौरान अगर जर्मन पायलट को अचानक इजेक्ट करना पड़े तो उनके शरीर पर पड़ने वाले असर को देखने के लिए ये प्रयोग किया गया था. इस प्रयोग के लिए बंदी बनाए हुए कैदियों को 20.000 मीटर की उंचाई से गिराया जाता था. इस दौरान कई कैदियों की मौत हो जाती थी. सिर्फ इतना ही नहीं, उन कैदियों को बिना ऑक्सीजन सीलेंडर के उंची जगह पर तड़पने के लिए छोड़ दिया जाता था ताकि ये पता चल सके कि वह कितनी देर वहां जिंदा रह पाते हैं|
फ्रीजिंग एक्सपेरिमेंट:इस प्रयोग के तहत कैदियों को 3-4 घंटों तक बर्फ से भरे टैंक में रखा जाता था. जिसके बाद उन्हें कई घंटो तक -6 डिग्री सेलशियस तापमान में बिना किसी कपड़े के रखा जाता था. इस प्रयोग के बाद उनके शरीर को गर्म करने के लिए खौलते हुए पानी में डाल दिया जाता था. इस प्रयोग के ज़रिए मेंगले ये पता लगाना चाहता था कि इस स्थिति में मानव शरीर किस तरह से रिएक्ट करता है|
हेड इन्जूयरी एक्सपेरिमेंट:ये प्रयोग 11-12 साल के बच्चों पर किया जाता था. इस दौरान उन्हें कुर्सी से बांध दिया जाता था ताकि वह हिल ना सकें. जिसके बाद उनके सिर पर एक मशीनी हथौड़े से हर थोड़ी देर में मारा जाता है. इस टॉर्चर से परेशान होकर कुछ बच्चें पागल हो जाते थे तो कुछ की उसी समय मौत हो जाती थी|


सी- वॉटर एक्सपेरिमेंट:समुद्र के पानी की शुद्धता की जांच करने के लिए नाज़ी कैदियों पर इस तरह के प्रयोग करते थे. कैदियों को भूखे- प्यास रखकर सिर्फ समुद्र का पानी पिलाकर जिंदा रखा जाता था. कई दिनों तक उन्हें उसी अवस्था में रखने के बाद नाज़ी फिर उनके शरीर पर कई तरह के प्रयोग किया करते थे. जिसके दौरान कई कैदियों की मौत भी हो जाती थी और जो बच जाते थे उन्हें गैस चैम्बर में डाल दिया जाता था|
1945 की शुरूआत में नाज़ी कैंप को दुश्मन सेना ने बुरी तरह से नष्ट कर दिया था. अपनी सारी रिसर्च को बचाने के लिए जोसेफ मेंगले ने उसे अपने एक दोस्त को सौंप दिया. और खुद वहां से फरार हो गया. मेंगले को आगे चलकर दिल की बिमारी हो गई थी, जिसकी वजह से 1979 में जब वह अटलांटिक महासागर में तैरने गया तो स्ट्रोक की वजह से पानी में डूबकर उसकी मौत हो गई|

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