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Wednesday, April 10, 2019

क्या तीन सीटों पर गठबंधन के बाद दलित वोटरों के सहारे पार होगी गठबंधन की नाव

क्या तीन सीटों पर गठबंधन के बाद दलित वोटरों के सहारे पार होगी गठबंधन की नाव.

(whether the alliance will cross the support of dalit voters after coalition alliance)
ताज नगरी आगरा, इस जिले में दो लोकसभा सीटें आती हैं. पहली आगरा सुरक्षित सीट और दूसरी फतेहपुर सीकरी. इसके अलावा एक सीट है धर्म नगरी मथुरा की. चुनाव यात्रा में हमने आगरा और मथुरा की इन तीन लोकसभा सीटों पर वोटरों का मुद्दा और नजरिया जानने की कोशिश की.
इन तीन सीटों पर गठबंधन जाट, मुस्लिम और दलित गठजोड़ के बहाने बीजेपी का तख्ता पलट करने में लगा है.
इन तीनों सीटों पर सबसे पहले हमने हाल जाना दलित मतादातओं का. उत्तर प्रदेश की राजनीति में आम तौर पर ये माना जाता रहा है कि दलित बहुजन समाज पार्टी का परंपरागत वोटर है लेकिन 2014 और 2017 के चुनावों में बीजेपी की बंपर जीत के बाद ये धारणा टूट गई है. 2019 के लोकसभा चुनाव में एसपी-बीएसपी और आरएलडी के गठबंधन के बाद फिर एक बार चर्चा तेज हो गई कि क्या दलित वोटर बीएसपी के साथ वापस आएगा? लेकिन इससे अहम सवाल था, क्या बीएसपी सुप्रीमों मायावती ही दलितों की अकेली नेता हैं.

तीनों लोकसभा सीटों का गणित अलग-अलग नजर आ रहा है:-
मथुरा लोकसभा सीट की तो यहां दलित की अलग-अलग जातियों के अलग-अलग मुद्दे और अलग-अलग नेता हैं. मथुरा शहर में खटिक मोहल्ले की चाय की दुकान पर चुनाव को लेकर गरमा-गरम बहस चल रही थी. मामला सुबह के चाय का था तो हम भी बिना पत्रकार बताए उस बहस में शामिल हो गए. बहस का मुद्दा ये था कि पहले दलित हैं या पहले हिन्दू? इलाके के युवा मतदाताओं का दावा था कि जब दंगे जैसे हालात होते हैं, तब पश्चिम में अल्पसंख्यकों के सबसे पहले शिकार जाट और खटिक ही होते हैं. ऐसे में वो अपने को हिन्दू होने से अलग कैसे कर सकते हैं? लेकिन जब मामला गांव में पहुंचता है तो अलग हो जाता है.

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