कोरोना से बीमार हुआ शिक्षा तंत्र
(Corona made Indian Education system really sick)
अब इसे मज़बूरी समझा जाए या बीमारी हर कोई इस कोरोनावायरस से परेशान नजर आ रहा है अब चाहे वो ठिकाना तलाश रहे प्रवासी मजदूर हों या फिर अपने वतन लौटने को तरस रहे अप्रवासी भारतीय, चाहे वो हालात से जूझती सरकार हो या मुद्दे की आड़ में राजनीतिक रोटियां सेंकता विपक्ष । परेशान दुनिया का हर छोटा बड़ा देश , देश का हर छोटा बड़ा तबका है । इन्हीं में से एक तबका ऐसा ही है जो इस देश की सबसे बड़ी समस्या से लड़ रहा है और वो तबका है हीलाहवाली के शिकार शिक्षा तंत्र (Education System) से परेशान इस देश का विद्यार्थी वर्ग ।
औपचारिकता किस हद तक बढ़ गई है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि कुछ दिनों पहले परीक्षा को जान से ज्यादा कीमती बताने वाले एक सम्माननीय यूनिवर्सिटी के उप कुलपति बाद में छात्रों से कहते हैं की जैसे आप हैं वैसे हम , हमें परीक्षा के बारे में कुछ नहीं पता ।
रोज़ सुबह अखबार में एक तरफ खबरें आती है कि इतने नए संक्रमित इतनी मौतें और साथ में एक खबर और कि परीक्षा(Examinations) कराने पर विचार कर रहा यूजीसी(U.G.C)। खबर प्रकाशित होते ही आग जैसी लग गई , आग लगना भी जायज थी ! कोई भी जिम्मेदार व्यक्ति जिम्मेवारी लेने से कतरा रहा था । जहां एक तरफ कुछ शीर्ष विदेशी शिक्षा संस्थान जैसे हार्वर्ड (Hayward), ऑक्सफोर्ड(Oxford)तथा मिशिगन(Mishigun University) विश्वविद्यालय जहां ऑनलाइन कोर्सेज फ्री कर रहे थे वहां दूसरी तरफ हिंदुस्तान के अखबारों में खबरें आ रही थीं कि हर हाल में होगी परीक्षा । डर परीक्षा का नहीं था डर फेल होने का भी नहीं था डर इस बात का था कि हमारी जान का क्या होगा ? ट्विटर(twitter) पर हर रोज़ विरोध प्रदर्शन हो रहे थे ! हर रोज़ #noexamsincovid #promotestudents जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे थे ।हर रोज़ डीएम(D.M.)से लेकर सीएम(C.M.) तक ज्ञापन सौंपे जा रहे थे पर कोई भी शीर्ष अधिकारी बयान देने तक से कतरा रहा था ।
मुहिम तेज हुई तो देश के एक आधार स्तंभ यानि देश की मीडिया ने मामला संज्ञान में लिया और बात आगे पहुंचाई। और आखिर कार यूजीसी यानी कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grant Commission) ने फैसला लिया कि अंतिम वर्ष के अलावा सभी की परीक्षाएं रद्द होंगी । यह विजय थी छात्रों की यह विजय थी लाचारी पर न्याय की यह विजय थी शिक्षा कि परंतु यह बात अब भी विचारणीय है और जायज भी कि कब तक भारत का शिक्षा तंत्र इसी तरह लाचार रहेगा ? कबतक भारत में हर हर छात्र मौलिक समस्याओं का शिकार रहेगा ? कब तक देश में काग़ज़ी परीक्षाएं छात्रों का भविष्य निर्धारित करेंगी ? आखिर कब तक?
लेखक - प्रफुल्ल भट्ट । (Prafull Bhatt)
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