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Friday, October 26, 2018

सैफ की फिल्म बाज़ार आज रिलीज़, कितनी होगी बॉक्स ऑफिस पर सक्सेस

सैफ की फिल्म बाज़ार रिलीज़ हो रही है. सैफ की पिछली कई फिल्मों के बाद से ये उनकी मोस्ट अवेडेट फिल्म मानी जा रही है. नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज़ सेक्रेड गेम्स में दमदार परफॉर्मेंस दे चुके सैफ से उनके फैंस की उम्मीदें भी बढ़ गई हैं. 


गौरव.के.चावला के डायरेक्शन में बनी ये फिल्म मुंबई के स्टॉक मार्केट पर बेस्ड है. फिल्म में सैफ शकुन कोठारी नाम के एक गुजराती बिज़नेसमैन का किरदार निभा रहे हैं जिसे सिर्फ पैसा कमाने से मतलब है. सही या गलत किसी भी तरह से उसे सिर्फ नोट छापने हैं.
शकुन जड़ों से जुड़े रहने की बात करता तो है लेकिन पैसों के रास्ते में आ रहे रिश्तों को किनारे करने में वह ज़रा भी नहीं हिचकता. दूर इलाहाबाद से शकुन को सिर्फ एक बिज़नेसमैन के रूप में देखने वाला रिज़वान अहमद (रोहन मेहरा) उसे अपना आइडल मानता है. रिज़वान को स्टॉक मार्केट में शकुन के साथ काम करना है और उसके जैसा बनना है. यही सपना लेकर वह मुंबई आता है. यहां वह शकुन के साथ काम तो करने लगता है. लेकिन उसके बनाए एक जाल में फंस जाता है. अब वह कैसे इससे बाहर आता है और शकुन से आगे निकलता है इसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी. फिल्म शेयर बाज़ार के बिज़नेस, पैसा और पावर पर बेस्ड मार्केट में होने वाले उतार-चढ़ाव और बेसिक बारीकियों को दिखाती है.
फिल्म में क्रूज, फॉरेन लोकेशन, मंहगे होटल, ऊंची बिल्डिंगों का खूब प्रयोग हुआ है, माने पूरा माहौल बना है, ऐश-ओ-आराम की जिंदगी की झलक दिखाने का. लेकिन इस लक्जरी वाली लाइफ के बीच बन गई, खुद की फ्रॉड वाली छवि से जूझता शकुन कोठारी है, जिसे सैफ ने बहुत उम्दा तरीके से निभाया है. सैफ के गुजराती बोलने से लेकर उनकी कुटिल मुस्कान तक सब अपना प्रभाव छोड़ती है. अपने हाव-भाव से भी सैफ साबित करते हैं कि वे वाकई इस लायक हैं कि लोग उनसे हाथ मिलाना चाहें. सैफ के अलावा राधिका आप्टे की एक्टिंग भी प्रभाव छोड़ती है. चित्रांगदा भी अपनी सीमित स्क्रीन प्रजेंस में पूरा प्रभाव छोड़ती हैं. उन्होंने अपने एक एलीट परिवार में पैदा हुई महिला के रोल के साथ पूरा न्याय किया है. एक मां के रोल में भी वो फिट बैठती हैं. हां, रोहन मेहरा को अपनी एक्टिंग को और ज्यादा प्रैक्टिस के जरिए मांझने की जरूरत है. उनके एक्सप्रेशन कहीं-कहीं उनका साथ छोड़ते से दिखते हैं.
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी और आर्ट डायरेक्शन जबरदस्त है. जिनकी बदौलत आप फिल्म में बस उच्चवर्गीय जीवनशैली को करीब से देखते ही नहीं हैं बल्कि महसूस भी कर पाते हैं. इसके अलावा गीत-संगीत भी ठीक है, जिसके बिना खांटी बॉलीवुड फिल्मों में कुछ मिसिंग सा रह जाता है. म्यूजिक और गानों के बारे में एक अच्छी बात यह है कि वे ठीक वक्त पर आते हैं, जिससे दर्शक असहज नहीं होते कि इस परिस्थिति में गाने की क्या जरूरत थी. हां एक गीत की शुरुआत में ऐसी परिस्थिति बनती सी दिखती है लेकिन गीत की खूबसूरती उसे संभाल लेती है. योयो हनी सिंह, बिलाल सईद, कनिका कपूर, अमाल मलिक का नाम फिल्म के गीतों से जुड़ा है.
निर्देशन में गौरव.के.चावला ने अच्छा किया है. खासकर फिल्म को जो टच दिया जाना था, जो मार्केट के दांव-पेंच दिखाए जाने थे. जिस तरह से मार्केट के फर्जीवाड़े को करीब से आम दर्शकों के लिए पेश करने का प्रयास निर्देशक का था, वह फिल्म में उभरकर सामने आता है. इससे ज्यादा सफलता कि बात एक निर्देशक के लिए क्या हो सकती है कि वो जो बात दर्शकों तक पहुंचाना चाहता था,

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