ऑनलाइन शॉपिंग पर भारी डिस्काउंट पाने वालों को बड़ा झटका, ख़त्म हुए अच्छे दिन.
भारत सरकार ने अमेज़ॉन डॉट कॉम और वॉलमार्ट के फ़्लिपकार्ट समूह जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों पर कड़े नियम लगाते हुए फ़ैसला सुनाया है कि अब वो उन कंपनियों के उत्पाद नहीं बेच सकतीं, जिनमें उनकी अपनी हिस्सेदारी हैं.उनके उत्पाद नहीं बेच सकती है. एक बयान में सरकार ने कहा है कि ये कंपनियां अब सामान बेचने वाली कंपनियों के साथ विशेष समझौते नहीं कर सकतीं और नए नियम एक फ़रवरी से लागू होंगा. वाणिज्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा है, ''कोई भी ऐसी इकाई जिसमें ई-कॉमर्स कंपनी या उस समूह की दूसरी कंपनी की इक्विटी है या फिर इनवेंटरी पर नियंत्रण है, उसे ई-कॉमर्स कंपनी के प्लेटफ़ॉर्म (.com) पर सामान बेचने की इजाज़त नहीं होगी.
लेकिन ये खेल है क्या, ई-कॉमर्स कंपनियां अपनी होलसेल इकाइयों या समूह की दूसरी कंपनियों के ज़रिए बड़े पैमाने पर ख़रीदारी करती हैं, जो चुनिंदा कंपनियों को अपना माल बेचते हैं.
दूसरी कंपनियों या फिर ग्राहकों को सीधे ये उत्पाद बेच सकती हैं और क्योंकि उत्पादों के दाम बाज़ार रेट से कम पर होते हैं, इसलिए वो डिस्काउंट काफ़ी दे पाते हैं. मसलन, किसी ख़ास वेबसाइट पर कोई ख़ास मोबाइल फ़ोन मॉडल पर लगने वाली सेल. नए नियमों के पीछे भारतीय रिटेलरों और कारोबारियों की वो शिकायतें हैं जिनमें कहा गया था कि दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनियां अपनी सहयोगी कंपनियों की इनवेंटरी पर कंट्रोल रखती हैं या फिर सेल्स को लेकर ख़ास एग्रीमेंट कर लेती हैं.
नए नियम देश के छोटे कारोबारियों के लिए राहत की ख़बर है, जिन्हें डर सता रहा था कि अमरीका की दिग्गज कंपनियां ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के ज़रिए भारत के रिटेल बाज़ार में पीछे के दरवाज़े से दाख़िल हो रही हैं.ऑनलाइन शॉपिंग करने वालों के अब अच्छे दिन ख़त्म होने वाले है.वो उन कंपनियों के उत्पाद नहीं बेच सकतीं, जिनमें उनकी अपनी हिस्सेदारी हैं.अब ऑनलाइन शॉपिंग करने पर परेशनी हो सकती है.
भारत सरकार ने अमेज़ॉन डॉट कॉम और वॉलमार्ट के फ़्लिपकार्ट समूह जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों पर कड़े नियम लगाते हुए फ़ैसला सुनाया है कि अब वो उन कंपनियों के उत्पाद नहीं बेच सकतीं, जिनमें उनकी अपनी हिस्सेदारी हैं.उनके उत्पाद नहीं बेच सकती है. एक बयान में सरकार ने कहा है कि ये कंपनियां अब सामान बेचने वाली कंपनियों के साथ विशेष समझौते नहीं कर सकतीं और नए नियम एक फ़रवरी से लागू होंगा. वाणिज्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा है, ''कोई भी ऐसी इकाई जिसमें ई-कॉमर्स कंपनी या उस समूह की दूसरी कंपनी की इक्विटी है या फिर इनवेंटरी पर नियंत्रण है, उसे ई-कॉमर्स कंपनी के प्लेटफ़ॉर्म (.com) पर सामान बेचने की इजाज़त नहीं होगी.
लेकिन ये खेल है क्या, ई-कॉमर्स कंपनियां अपनी होलसेल इकाइयों या समूह की दूसरी कंपनियों के ज़रिए बड़े पैमाने पर ख़रीदारी करती हैं, जो चुनिंदा कंपनियों को अपना माल बेचते हैं.
दूसरी कंपनियों या फिर ग्राहकों को सीधे ये उत्पाद बेच सकती हैं और क्योंकि उत्पादों के दाम बाज़ार रेट से कम पर होते हैं, इसलिए वो डिस्काउंट काफ़ी दे पाते हैं. मसलन, किसी ख़ास वेबसाइट पर कोई ख़ास मोबाइल फ़ोन मॉडल पर लगने वाली सेल. नए नियमों के पीछे भारतीय रिटेलरों और कारोबारियों की वो शिकायतें हैं जिनमें कहा गया था कि दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनियां अपनी सहयोगी कंपनियों की इनवेंटरी पर कंट्रोल रखती हैं या फिर सेल्स को लेकर ख़ास एग्रीमेंट कर लेती हैं.
नए नियम देश के छोटे कारोबारियों के लिए राहत की ख़बर है, जिन्हें डर सता रहा था कि अमरीका की दिग्गज कंपनियां ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के ज़रिए भारत के रिटेल बाज़ार में पीछे के दरवाज़े से दाख़िल हो रही हैं.ऑनलाइन शॉपिंग करने वालों के अब अच्छे दिन ख़त्म होने वाले है.वो उन कंपनियों के उत्पाद नहीं बेच सकतीं, जिनमें उनकी अपनी हिस्सेदारी हैं.अब ऑनलाइन शॉपिंग करने पर परेशनी हो सकती है.
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